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रविवार, 5 सितंबर 2010

डाकू

सन्नाटो को चीरती
घोड़ों की टाप
और घुड़सवार की रोबदार आवाज
डाकुओ की पहचान थी
चम्बलो की बीहड़ो में रहते थे ॥

आज भी कायम है
डाकुओ की बादशाहत
हमने तो पहनाया था ताज
लोकतंत्र के सिपाही का
उस सिपाही का
जिसकी आवाज लोकतंत्र में
गोलियों से भारी होती है ॥

मगर ....
इन सिपाहियों की आवाज
कुंद हो गई है
नाख़ून और पंजे बढ़ गए है ॥
इन्होने अपनी सेवा में
लगा रखी है ,कई पुतलीबाई
घोड़ो की जगह है
चमचमाती गाड़ियाँ॥

एक विशेष अंतर आया है ...
पहले
हम डाकुओ से डरते थे
आज
डाकू हमें डराते है ॥

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