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सोमवार, 28 जून 2010

जिन्दगी रस -बेरी तो नहीं

पढ़िए --वीर रस
लिखिए -हास्य रस
खेलिए --काम रस
बाटिये --प्रेम रस
पान कीजिये --निंदा रस
देखिये --श्रींगार रस
सुनाइऐ --व्यंग रस
बच्चो को दीजिये --ममता रस
--वात्सल्य रस
बड़ों से लीजिये --स्नेह रस
छोटों को दीजिये --आशीर्वाद रस
नहाइऐ -- ईर्ष्या रस में
डूबिये --मित्रता के रस में ...
अरे भाई !
कही ये जिन्दगी
खट्टी -मिट्ठी रस -बेरी तो नहीं ॥

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