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शनिवार, 26 जून 2010

गीत --1

गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है
फेस -बुक पर सभी कुवारी लडकियों को समर्पित


आज सजने की बेला है , सज लू सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं
गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं
गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन

पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें
जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे तुम्हें
नाच रहा है मन मेरा , जैसे हिरन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन

भूल गयी मैं अपना अतीत ,हो चली मैं अब तुम्हारे करीब
पुलकित है मेरा रोम -रोम ,आज जागा है मेरा नसीब
कड़कती है बिजली , जैसे हो सूर्य -किरण
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन

गोद भर देना मेरी , कहलाउगी माँ
नाचूगी, गाउगी , बाँधुगी समां
इतराएगा मन मेरा ,जैसे इठलाती पवन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन
----------------बबन पाण्डेय

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