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रविवार, 24 अप्रैल 2022

 


                       मुझे लगता  है नदियों का इतिहास मानव के इतिहास से सदियों पुराना है. प्राकृतिक रूप से वर्षा या वर्फ जिस मार्ग से पिघल कर बहती है, वह मार्ग ही नदी कहलाती है. नदियों की चौड़ाई या गहराई इस बात पर निर्भर करती है कि कितने क्षेत्र का पानी प्राकृतिक ढाल से स्वंम बह कर उस नदी में आती है.

मैंने कहीं पढ़ा है या किसी ने मुझे बताया है कि भादों महीने की अमावस्या को जिस नदी का पानी जितनी दूर फैला होता है , वह उसकी चौड़ाई कहलाती है. इस चौड़ाई के आधार पर बांध बनने का कोई मतलब नहीं रह जाता. बिहार का शोक कही जाने वाली कोशी नदी अपने मध्य से दायें और बांयें 60 किलोमीटर घुमती ( Meandering) थी. वर्तमान में बांध बनाकर कोशी नदी के इस फैलाव को 7-9 किलोमीटर के बीच रोक दिया गया.

अगर बांधों के बीच की दूरी कम है तो स्वाभाविक रूप से तटबंधों पर दबाब बनेगा और कमजोर बिन्दुओं पर यह टूटेगा. अगर हम प्रायोगिक तौर पर  तटबंधों को खूब मज़बूत कर दें तो नदी अपना बहाव मार्ग बढाने के लिए अपने तल  को काट कर (Erode) अपनी गहराई बढ़ा लेगी. अर्थात नदी अपने अन्दर आने पानी को ढोने के लिए स्वम रास्ता बना लेती है.

जल संसाधन विभाग के अभियंताओं की यह ज़िम्मेदारी है कि हर हाल में तटबंधों को टूटने से बचाया जाए तथा मुख्य धारा को तटबंध से दूर रखा जाय. इस पुस्तक में बिहार के  मुजफ्फरपुर जिला के बीचोबीच बहने वाली बूढी गंडक नदी की तेज बहाव  से (वर्ष 2021 में ) तटबंधों  को सुरक्षित की वास्तविक कहानी है. इस पुस्तक को पढने से आप जान जायेगे कि जल संसाधन विभाग के अभियन्ता किन परिस्थितियों से जूझ कर तटबंधों की रक्षा करते है. एक तरह से अभियंता नदियों से लड़ाई करते है.

कोई भी लड़ाई या युद्ध अकेले नहीं जीती जा सकती. एक सामूहिक प्रयास ही सफलता का पर्याय होती है, चाहे लड़ाई नदी से हो या फिर पडोसी देश के दुश्मनों से.  दिनांक 10 जुलाई 2022 से 15 अक्टूबर 22 तक बूढी गंडक नदी के  दायाँ और बायाँ तटबंध को सुरक्षित रखने में जो लड़ाई लड़ी गई, उस लड़ाई में  निम्नाकित व्यक्तियों / संवेदकों /एजेंसियों की  सहभागिता सदैव अविस्मरणीय रहेगी.

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

वृक्ष

अगले जन्म में
मैं बनना चाहता हूँ एक वृक्ष
फलदार,बरगद,पीपल या नीम ही सही
छाया तो दूंगा
पक्षी जब बनाएँगे घोसले
तो कितना इतराऊगां मैं
अगर नीम बन गया
तो मेरे बीज से बनेंगे कीटाणुनाशक

अगर वृक्ष न बन सका
तो मुझे बाँस ही बना देना
पूजा जाऊंगा नदी किनारे
छठ पर्व में सूप बनकर

कुछ नहीं तो झाँडी ही बना देना
आक्सीजन संतुलन में काम आऊंगा 

सोमवार, 29 सितंबर 2014

शब्द



लाखों करोड़ों शब्द है
कुछ नफरत के
कुछ प्यार के
तो कुछ मनुहार के भी
नफरत के शब्द सजा दो
तो गाली
प्यार के शब्द सजा दो
तो मोहब्बत हो जाता है
कुछ शब्द झूठ के भी है
तो कुछ शान्ति वार्ता के भी
कुछ शब्द आदर के है
तो कुछ अनादर के भी
शब्दों को सजाने की कला ने
कभी किसी को कवि बनाया
तो किसी को झूठा
शब्दों की सजावट ने
कभी क्रांति की बिगुल फूकी
तो कभी शान्ति की पहल की
आईए....
हम शब्दों se  ईश्क  करे

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

फिदरत

रंग बदलने को यहां ,कितने लोग है सारे
वादा कर  नहीं ला पाते ,वे चाँद- सितारे  //

चुटकियों में तोड़ देते हैं, लोग अग्नि के फेरे
बस, यु ही कहते रहते हैं, मैं तेरा ,तुम मेरे //

रोज बदलते है, लोग यहां कितने भेष ऐ बबन
तोड़ लेते है फूल , चाहे उजड़ जाए ये  चमन //

बुधवार, 25 जून 2014

^^^^^ गॉव की लड़की और शादी का फोटो^^^^

 सकुचाती है
शर्माती है 
गॉव की लड़की 
शादी के लिए अपना फोटो खिचाने से पहले 
जिसे लड़के वालों को देना है...//

यु तो वह हमेशा खिलखिलाती रहती है...
मगर गंभीर हो गई है कैमरे के सामने
वह अनभिज्ञ है इस बात से
ख़राब फोटो से बात बिगड़ सकती है

वह शहर की लड़की से अलग है
नहीं दिखाना चाहती अपने उरोज
नहीं दिखाना चाहती अपनी बाहें स्लीवलेस ब्लाउस में
नहीं खुला रखना चाहती अपनी बाल
नहीं पोतना चाहती अपने अधरों में लाली

और हम सब   उसके साथ
जबरजस्ती किये जा रहे है //

शनिवार, 21 जून 2014

^^^रंग बदलते बादल और तुम ^^^



उजले बादलों की तरह उड़ती हो !
जब शांत होती हो ..
थोड़ा सा गुस्सा ...
फिर लाल बादलों की तरह दिखती हो
और जब प्यार करती हो
काले बादलों की तरह लगती हो
खूब प्यार बरसाने वाली ...

मेरे प्रिय ! मुझे गर्व है तुम पर
तुम बादलों की तरह रंग बदलती हो
गिरगिट की तरह नहीं

बुधवार, 11 जून 2014

" अखबार "

सोचता  हूँ
कब  पढ़ पाउँगा .
अखबार ....
जिसमे न छपी हो ..
दुष्कर्म की कहानी ..
महगाई की मार..
हिन्दू-मुस्लिम के बीच मार-काट की ख़बरें
जेब-कटाई की ख़बरें//

जिसमे लिखा  मिले..
सबको पीने का पानी मिल गया...
सबको रहने को घर हो गया
गंगा निर्मल हो गई ...
नेता जो बोलेंगे /वही करँगें
बूढ़े माँ बाप बेटे के घर में रहने लगे //

मुझे इंतज़ार है ...
एक ऐसे अखबार के छपने का


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